सार्वभौम्य सत्य :
सम्भवातायाह कड़वा ..... किंतु आज का सच ........
हर खुशी है लोगों के दामन में,
पर एक हँसी के लिए वक्त नही.
दिन रात दौड़ती दुनिया में,
ज़िंदगी के लिए ही वक्त नही.
माँ की लोरी का एहसास तो है,
पर माँ को माँ कहने का वक्त नही.
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके,
अब उन्हें दफनाने का भी वक्त नही.
सारे नाम मोबाइल में हैं,
पर दोस्ती के लए वक्त नही.
गैरों की क्या बात करें,
जब अपनों के लिए ही वक्त नही.
आंखों में है नींद बड़ी,
पर सोने का वक्त नही.
दिल है ग़मों से भरा हुआ,
पर रोने का भी वक्त नही.
पैसों की दौड़ भी ऐसे दौडे,
की थकने का भी वक्त नही.
पराये एहसासों की क्या कद्र करें,
जब अपने सपनो के लिए ही वक्त नही.
तू ही बता ऐ ज़िंदगी,
इस ज़िंदगी का क्या होगा,
की हर पल मरने वालों को,
जीने के लिए भी वक्त नही.......
सौजन्य से - याहू ग्रुप
आशोक श्रीवास्तव