लोक लेखा समिति

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क्या है लोक लेखा समिति

भारतीय संसद
भारतीय संविधान के आने पहले भी थी लोक लेखा समिति
लोक लेखा समिति भारतीय संसद की सबसे पुरानी और सबसे महत्वपूर्ण समितियों में से एक है.
भारतीय संसद के भी बनने से पहले 1921 में सेन्ट्रल लेजिस्लेटिव असेम्बली में लोक लेखा समितियां होती थीं.
इसका मुख्य काम सरकारी ख़र्चों के खातों की जांच करना है. इसका आधार हमेशा नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट ही होती है.
भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स जैसी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को छोड़ कर जहाँ भी सार्वजनिक धन का व्यय होता है, वहां-वहां ये समिति जांच कर सकती है. इसका कार्यकाल सिर्फ़ एक वर्ष का होता है.

इसकी रूप रेखा क्या होती है ?

1967 तक इसका अध्यक्ष सत्तारूढ़ दल से होता था. 1967 के बाद से हमेशा इसका अध्यक्ष विपक्ष से होता है. विपक्षी दलों की राय से लोक सभा अध्यक्ष लोक लेखा समिति के अध्यक्ष की नियुक्ति करता है.
इसमें संसद में मौजूद भिन्न-भिन्न राजनितिक दलों के सांसद होते हैं. इसमें अधिकतम 22 सदस्य होते हैं हैं जिसमे से 15 लोक सभा के सांसद होते हैं. शेष सदस्य राज्य सभा से होते हैं. केंद्रीय मंत्री इसके सदस्य नहीं हो सकते.

इसकी रिपोर्टों किस तरह की होती हैं ?

आम तौर पर इसकी रिपोर्टों में सिफ़ारिशें होती हैं जो तकनीकी रूप से भारत सरकार के लिए बाध्यकारी नहीं होतीं. लेकिन सामान्य रूप से इसकी सिफ़ारिशों को गंभीरता से लिया जाता है और उन पर सरकार संसद में कार्रवाई नोट्स भी रखती है.
लोक लेखा समिति को सरकार की कार्रवाई नोट्स की समीक्षा करने का भी अधिकार है और उसके आधार पर जांच के लिए अनुमोदन करने का भी अधिकार इस समिति को है.

राजनितिक हंगामें


लोक लेखा समिति कि रिपोर्ट हर साल सुर्ख़ियों में रहती है लेकिन 2-जी घोटाले की जांच और इसके गंभीर राजनितिक परिणाम के चलते ये इतनी ज़्यादा सुर्ख़ियों में बनी हुई है.
1958 में जवाहर लाल नेहरु की सरकार के ज़माने में एलआईसी के एक विवादत निवेश के मामले में इस समिति की रिपोर्ट से काफ़ी हंगामा हुआ था जिसके और कुछ और कारणों के चलते तत्कालीन वित्त मंत्री टीटी कृष्णामचारी को अपने पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा था.
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